ध्यानं
कर्पुराचलसन्निभां त्रिनयनीं श्रीसिद्धिकालीं परां शुष्कांगीं
नरमुण्डमालगलकां प्रेतासनां दंष्टिणीं | खड्गं चांकुश वाण
कर्ति डमरुं दक्षे वरं वामके खेटं पाशधनुर्नृमुण्ड चषकं
चाभीति हस्तां भजेत् ||
श्री ईश्वर उवाच
अथ वक्ष्य महादेव्या स्तोत्रं सर्वज्ञ भाषितं |
पठनाद्भक्ति युक्तेन शक्रस्यैश्वर्यमाप्नुयात् ||
ब्रह्मणा ब्रह्मशब्देन स्तुतात्वं परमेश्वरि |
इच्छाशक्तिं परां मायां सिद्धिकालीं नमाम्यहम् ||१||
पालनाय जगद्देवी विष्णुनात्वं परापरां |
संस्तुताज्ञानशब्देन सिद्धिकालीं नमाम्यहम् ||२||
अपरां कालरुद्रेन संहारार्थं स्तुता शिवे |
त्वां क्रियां रुद्रशब्देन सिद्धिकालीं नमाम्यहम् ||३||
ईश्वरेन लयार्थत्वां स्तुतासिचित्कलेव्यये |
कलातीतां महामायां सिद्धिकालीं नमाम्यहम् ||४||
सदा शिवेन सततं स्तुतात्वं परमेश्वरि |
अनुग्रहाय लोकानां सिद्धिकालीं नमाम्यहम् || ५ ||
इदं स्तोत्रं पठेद्यस्तु भक्तियुक्तेन चेतसा |
तस्मैदद्यात् सिद्धिकाली सर्वसिद्धिर्न संशयः ||
यः श्लोकपञ्चकं देवी नित्यं मनसि धारयेत् | सर्वज्ञत्वं लभेद्देवि सिद्धिकाली प्रसादतः ||
यामासाद्य मया देवि प्राप्ता सिद्धिरनेकधा | ब्रह्मापि सृष्टिकर्त्तात्वं विष्णुः स्यात् पालको भवेत् ||
संहार कृत्कालरुद्र ईश्वरोलय कृत्सदा |
वहुनात्र किमुक्तेन सा देवी ध्यान मात्रत ||
सजीवन्नेव मुक्तिः स्या सत्य सत्यं मयोदितम् |
|| इति श्रीत्रिदशडामरे श्रीसिद्धिकाली स्तोत्रं संपूर्णं |||