अथर्वण परम्परा में आदिम मन्त्र शन्नो देवी मन्त्र के साम का गायन विशेष आथर्वणिक कर्मकाण्डों में किया जाता हैं । इस साम के ऋषि अथर्वा , छन्द गायत्री तथा आपो देवता हैं । अथर्वणसाम की आधारभूत सामयोनि अथर्ववेद का प्रथम मन्त्र “ॐ शं नो॑ दे॒वीर॒भिष्ट॑य॒ आपो॑ भवन्तु पी॒तये॑ । शं योर॒भि स्र॑वन्तु नः ॥हैं।
Month: November 2018
॥ छिन्नमस्ताद्वादशनामस्तोत्रं।।॥
छिन्नग्रीवा छिन्नमस्ता छिन्नमुण्डधराऽक्षता | क्षोदक्षेमकरी स्वक्षा क्षोणीशाच्छादनक्षमा || १ || वैरोचनी वरारोहा बलिदानप्रहर्षिता | बलिपूजितपादाब्जा वासुदेवप्रपूजिता || २|| इति द्वादशनामानि छिन्नमस्ताप्रियाणि यः | स्मरेत्प्रातस्समुत्थाय तस्य नश्यन्ति नश्यन्ति शत्रवः ||३||
॥ बगलामुखीदशनामस्तोत्रम्॥
माँ पीताम्बरा राजराजेश्वरी भगवती बगलामुखी के अत्यन्त गोपनीय दस नामो वाल यह दिव्य दुर्लभ स्तोत्र हैं । इस स्तोत्र की फलश्रुति के अनुसार जो साधक शत्रुमुखस्तम्भनकरी बगलामुखी माँ के इस स्तोत्र का पाठ करता है वह देवी पुत्र होता हैं , मन्त्र सिद्ध होता हैं । ह्ल्रीं बगला सिद्धविद्या च दुष्टनिग्रहकारिणी । स्तम्भिन्याकर्षिणी चैव तथोच्चाटटनकारिणी ॥ भैरवी भीमनयना महेशगृहिणी शुभा । दशनामात्मकं स्तोत्रं पठेद्वा पाठयेद्यदि ॥ स भवेत् मन्त्रसिद्धश्च देवीपुत्र इव क्षितौ ॥
॥ छिन्नमस्ताकवच ॥
भगवती वज्रवैरोचनी की उपासना गुरुगम्य तथा दुर्लभ हैं। श्री छिन्नमस्ता का एक लघु कवच पोस्ट कर रहा हूं ,इस कवच के पारायण से भगवती वज्रसुन्दरी का अनुग्रह प्राप्त होता है तथा कष्ट, सङ्कट, शत्रुबाधा आदि का निग्रह होता हैं ।
हूं बीजात्मिका देवी मुण्डकर्तृधरापरा । हृदयँ पातु सा देवी वर्णिनी डाकिनीयुता ॥१॥ श्रीं ह्रीं हुँ ऐं चैव देवी पुर्वस्यां पातु सर्वदा । सर्वाङ्गं मे सदा पातु छिन्नमस्ता महाबला ॥२॥ वज्रवैरोचनीये हूं फट् बीजसमन्विता । उत्तरस्यां तथाग्नौ च वारुणे नैर्ऋतेऽवतु ॥३॥ इन्द्राक्षी भैरवी चैवासितांगी च संहारिणी । सर्वदा पातु मां देवी चान्यान्यासु हि दिक्षु वै ॥४॥ इदं कवचमज्ञात्वा यो जपेच्छिन्नमस्तकाम्। न तस्य फलसिद्ध: स्यात् कल्पकोटिशतैरपि ॥५॥
॥श्रीधूमावतीनामाष्टकस्तोत्र॥
भद्रकाली महाकाली डमरूवाद्यकारिणी । स्फारितनयना चैव टङ्कटङ्कितहासिनी ॥ धूमावती जगत्कर्त्री शुर्पहस्ता तथैव च । अष्टनामात्मकं स्तोत्रं यः पठेद्भक्ति सँयुक्त:। तस्य सर्वार्थसिद्धि:स्यात् सत्यं सत्यं हि पार्वति ॥