सूर्यभद्रमंडलम् का निर्माण सूर्य देवता सम्बन्धी धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता हैं । सौर सम्प्रदाय के लोप के साथ ही सूर्यभद्रमण्डल के निर्माण तथा पूजन का क्रम दुर्लभ हो चला । सौरमत में उपरोक्त मण्डल का निर्माण तथा पूजन सौर दीक्षा, सौर प्रतिष्ठा तथा सौर उत्सव (रथसप्तमी आदि) के समय किया जाता था । भद्रमार्तण्डकार की ” सूर्य व्रतेषु सर्वेषु शस्यते मण्डलम्त्विदम् ” उक्ति से यह स्पष्ट हो जाता हैं ।
सूर्यभद्रमंडलम् रेखाभेद से दो प्रकार का होता हैं ।
दोनों प्रकार के मंडलों को कृष्ण, रक्त, पीत, श्वेत तथा हरित इन पांच रंगों से भरा जाता हैं परन्तु रंग विन्यास में भेद हैं। ( चित्रों के अध्ययन से पाठक सरलता से अंतर ज्ञात कर सकते हैं ।) मध्य में केसर तथा कर्णिकायुक्त अष्टदलकमल का निर्माण किया जाता हैं। इसी अष्टदलकमल के मध्य परब्रह्मरूप सूर्य की अष्टग्रहों के साथ पूजा की जाती हैं। बाह्यभाग में भगवान सूर्य की द्वादशमूर्तियों का निर्माण व्योमरूप में किया जाता हैं। इन्हीं द्वादश चित्रों में प्रत्येक मासाधिपति सूर्यमूर्ति की पूजा की जाती हैं। अन्य कोष्ठको मे सूर्य के अंगायुध तथा परिवारदेवताओं की पूजा की जाती हैं ।
(१) विंशतिरेखात्मकसूर्यभद्रमंडलम्–
इस प्रकार के मंडल का निर्माण २०×२० रेखाओं से किया जाता हैं।

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(२) एकविंशतिरेखात्मकसूर्यभद्रमंडलम्– इस प्रकार के मंडल का निर्माण २१×२१ रेखाओं से किया जाता हैं।

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भगवान सूर्य के ध्यान के साथ ही लेख समाप्त किया जाता हैं। रक्ताब्जयुग्माभयदानहस्तं केयूरहाराङ्गदकुण्डलाढ्यम्। माणिक्यमौलिं दिननाथमीडे बन्धूककान्तिं विलसत्त्रिनेत्रम् ॥