
विभिन्न आम्नायों के उपसकों के मध्य प्रसन्नपूजा के समय कर्पूरस्तोत्र का पाठ कर पुष्पाञ्जलि देने का प्रचलन हैं । इसी क्रम में उत्तराम्नाय के साधकगण अत्यन्त दुर्लभ व गोपनीय सिद्धिलक्ष्मीकर्पूरस्तोत्र का पारायण किया करते हैं। स्रगधारा छन्द में निबद्ध यह स्तोत्र १९ मंत्रो वाला हैं। यह स्तोत्र अपने भीतर उत्तराम्नाय के गूढ़ रहस्यों को गर्भित किए हुए हैं । सिद्धिलक्ष्मीकर्पूरस्तोत्र की पुष्पिका के अनुसार यह स्तोत्र रुद्र्यामलतंत्र के उत्तरखंड में उपलब्ध होता हैं । इस स्तोत्र में प्रत्यक्षरूप से भगवती गुह्यकाली तथा भगवती सिद्धिलक्ष्मी की स्तुति की गईं हैं वहीं परोक्षरूप से भगवती कालसंकर्षिणी भट्टारिका की ।अथर्वणश्रुति में कहा भी गया है –
परोक्षप्रिया इव हि देवा भवन्ति प्रत्यक्षद्विषः॥
गोपथब्राह्मण १,१.१
यह स्तोत्र इन तीनों देवीस्वरूपों में अद्वैतभावना का प्रतिपादन करता हैं।
इस स्तोत्र के प्रथम तीनमंत्रो में भगवती गुह्यकाली की षोडशाक्षरीविद्या का उद्धार तथा इस विद्या के जप की फलश्रुति का वर्णन किया गया हैं । वहीं पर कहा भी गया है-
जप्ता मुक्तिप्रदा सा श्रवणपथगताप्यायुरारोग्यदात्री ॥
३.ब
अर्थात् भगवती गुह्यकाली की षोडशाक्षरीविद्या जप मात्र से मोक्ष को देने वाली हैं एवं श्रवणमात्र से आयु तथा आरोग्य को प्रदान करती हैं ।
अगले मंत्र “कालीं जंबूफलाभां ………………” में भगवती कालसंकर्षिणी भट्टारिका का अमूर्त ध्यान दिया गया हैं ।

अगले दो मंत्रो में भगवती गुह्यकाली की भरतोपासिताविद्या का उद्धार किया गया हैं ।
सातवें मंत्र में भगवती गुह्यकाली के दशवक्त्रा दशभुजा स्वरूप का वर्णन दिया गया हैं । आठवें मंत्र में देवदुर्लभ भगवती सिद्धिलक्ष्मी के नवाक्षरीमंत्र का उद्धार बताया गया हैं। नवें मंत्र में भगवती सिद्धिलक्ष्मी के पंचवक्त्रा दशभुजा स्वरूप का ध्यान बताया गया हैं। वहीं भगवती सिद्धिलक्ष्मी के ध्यान की फलश्रुति का भी वर्णन दिया गया हैं –
ध्यायेद् यः सिद्धिलक्ष्मीं शशधरमुकुटां
९.द
सिद्धयस्तत् करस्थाः॥
अगले मंत्रो में उपरोक्त विद्याओं के यंत्रोद्धार दिए गए हैं जो कि गुरुगम्य हैं। तेरहवें तथा चौदहवें मंत्रो में दूतीयाग का अत्यन्त सांकेतिक भाषा में वर्णन किया हैं। अगले मंत्र में उपरोक्त विद्याओं के पुरूश्चरण का विधान प्रकाशित किया गया हैं। सोलहवें मंत्र में बलिपशु तथा खड्गसिद्धि का विधान बताया गया हैं। अगले दोनों मंत्र इन विद्याओं की क्षिप्रसिद्धि प्रदान करने वाले कुलप्रयोग का वर्णन करते हैं। अंतिम मंत्र में सिद्धिलक्ष्मीकर्पूरस्तोत्र के पाठ की फलश्रुति का वर्णन किया गया हैं , वहीं कहा भी गया हैं जो साधक पूजा के अन्त में प्रसन्नचित्त होकर इस स्तोत्र का पाठ करता हैं वह शीघ्र ही जगदम्बा के अमृतमय चरणकमलरूप मधुको प्राप्त कर देवी का प्रियतर हो जाता हैं।
पठेद् यः पूजांते प्रमुदित मनो साधकवरः ।
१९. ब
स ते पादाम्भोजामृत मधुलिहस्यात प्रियतरः॥
भगवती सिद्धिलक्ष्मी की वन्दना कर लेखनी को विराम दिया जाता हैं ।

कलिदुःस्वप्नशमनीं महोत्पातविनाशिनीम् । प्रत्यंगिरां नमस्यामि सिद्धिलक्ष्मीं जयप्रदाम् ॥
The following only two lines to be chanted while completing the nitya puja ?
कलिदुःस्वप्नशमनीं महोत्पातविनाशिनीम् । प्रत्यंगिरां नमस्यामि सिद्धिलक्ष्मीं जयप्रदाम्
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no this Verse is from another stotra
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