कश्मीर का क्रमदर्शन – १

आगामी पुस्तक

‘ कश्मीर का क्रम दर्शन’ एक शोध परक ग्रन्थ है जिसके लेखन मैं दो वर्षों से अधिक समय लगा। भगवती श्रीसंकर्षिणी एवं पूर्वाचार्यों के अनुग्रह बल से इस पुस्तक को आकार देना सम्भव हुआ। लेखक के लिए यह अत्यन्त सौभाग्य की बात है कि पुस्तक का प्राक्कथन शैवयोगिनी माता ‘प्रभादेवी’ जी द्वारा लिखा गया है। इस पुस्तक के लेखन का उद्देश्य जनसामान्य को ‘ कालीनय’ का परिचय करवाना है।

भारतीय आचार्यों की परम्परा के अनुरुप प्रारम्भ में ‘अनुबंधचतुष्टय’ का लेखन किया गया है जो पुस्तक की विषयवस्तु, प्रयोजन, सम्बंध तथा अधिकार का वर्णन करता है। पुस्तक में क्रमनय के इतिवृत्त ताथा क्रम की विविध शाखाओं की चर्चा की गई है। महानयप्रकाश, द्वादशकालीपूजाविधि:, कालीकुलक्रमार्चापद्धति, जयद्रथयामल आदि ग्रंथों के अनुसार क्रमार्चा ( श्रीसंकर्षिणी तथा द्वादश कालियों का याग) का निरूपण किया गया है।१२/१३ अथवा १६/१७ कालियों को संख्या को लेकर पारंपरिक रुप से चलते आए हुए प्रश्न का क्रमागमों के आधार पर समन्वयात्मक उत्तर देने का प्रयास किया गया है।

आगामी अध्यायों में क्रमदर्शन में दीक्षा तथा सपर्या का सप्रमाण वर्णन किया गया है। अपर अध्याय में नेपाल एवं काश्मीर की शाक्त परम्परा पर क्रमनय के प्रभाव को उल्लिखित किया है। पाठकों के लाभार्थ परिशिष्ट में क्रमसद्भाव में वर्णित भैरवकृत ‘कालसंकर्षिणीस्तोत्र’ का भाषाभाष्य दिया गया है।
( क्रमश:)

5 thoughts on “कश्मीर का क्रमदर्शन – १

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