चतुर्वेदीय-यज्ञोपवीत-धारणमन्त्राः

॥ पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥

चारों वेद की विभिन्न शाखाओं के द्विज गणो के हितार्थ यज्ञसूत्र धारण के मन्त्रों का संग्रह करता हूं ।
सर्वप्रथम अपनी शाखा के अनुसार आचमन कर प्राणायाम करें । तदनंतर स्वसंप्रदाय के अनुसार यज्ञोपवीत धारण का संकल्प करें । ( शाक्त, शैव , स्मार्त तथा वैष्णव संप्रदायों के संकल्पवाक्य में भेद हैं ।) तत्पश्चात् यज्ञोपवीत धारण मंत्र का विनियोग पढ़कर ३ बार जल छोड़े । ( # दाक्षिणात्य विनियोग पढ़कर ब्रह्मरंध , मुख तथा ह्रदय का स्पर्श करते हैं । उत्तर भारत में ३ बार जल छोड़ेने की परिपाटी हैं। )
अपने वेद की शाखा के अनुसार मंत्र पढ़कर यज्ञसुत्र धारण करें।
(१)अथर्ववेदीब्राह्मण
( मुख्यतः गुर्जरदेशीय नागरब्राह्मण , उत्कलदेशीयब्राह्मण, कश्मीरीब्राह्मण जिनकी शाखा पैप्पलाद हैं । ) निम्न मंत्र से यज्ञोपवीत धारण करें।
ॐ पिप्पलाद ऋषिः । यजुष्छन्दः। लिङ्गोक्तदेवता ।
यज्ञॊपवितधारणे विनियोगः ॥
ॐ तत्तेऽहं तन्तु बध्नाम्यायुषे वर्चसे ओजसे तेजसे यशसे ब्रह्मवर्चसाय च ॥

(२) ऋग्वेदीब्राह्मण
( शांखायन तथा अश्वालायन शाखा के )
निम्न मंत्र से यज्ञोपवीत धारण करें।
ॐ परमेष्ठीप्रजापति ऋषि: । यजुष्छन्दः। लिङ्गोक्तदेवता । यज्ञॊपवितधारणे विनियोगः ॥
ॐ यज्ञोपवीतमसि यज्ञस्यत्वोपवीतेनोपनह्यामि॥

(३) शुक्लयजुर्वेदी (उत्तर भारत के अधिकांश ब्राह्मण वाजसनेयी हैं। ) तथा कठयजुर्वेदी (कश्मीरीपण्डित ) निम्न मंत्र से यज्ञोपवीत धारण करें।
ॐ परमेष्ठीप्रजापति ऋषि: । त्रिष्टुप्छन्दः। लिङ्गोक्तदेवता । यज्ञॊपवितधारणे विनियोगः ॥
ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत् सहजं पुरस्तात् । आयुष्यमग्रयं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतम् बलमस्तु तेज: ॥

(४) सामवेदी ब्राह्मण निम्न मंत्र से यज्ञोपवीत धारण करें।
ॐ परमेष्ठीप्रजापति ऋषि: । यजुष्छन्दः। लिङ्गोक्तदेवता । यज्ञॊपवितधारणे विनियोगः ॥
ॐ यज्ञोपवीतमसि यज्ञस्य त्वा यज्ञोपवीतेनोपनह्यामि॥

तत्पश्चात् निम्न मंत्र से जीर्ण सूत्र का त्याग करें।
ॐ एतावद् दिन पर्यन्तं ब्रह्म त्वं धारितं मया । जीर्णात्वात् त्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथासुखं ॥
पुनः आचमन कर यथाशक्ति गायत्रीमंत्र का जप करें । स्वेष्टदेवता को कर्म समर्पित करें।