॥ विश्वम्भरी स्तुती॥

िवश्वंभरी अखिल विश्व तनी जनेता विद्या धरी वदनमा वसजो विधाता । दुर्बुद्धिने दूर करी सदबुद्धि आपो माम पाहि ॐ भगवती भव दुःख कापो ॥१॥ भूलो पड़ी भवरने भटकू भवानी सूझे नहीं लगिर कोई दिशा जवानी भासे भयंकर वाली मन ना उतापो । माम पाहि ॐ भगवती भव दुःख कापो ॥२॥

आ रंकने उगरावा नथी कोई आरो जन्मांड छू जननी हु ग्रही बाल तारो ना शु सुनो भगवती शिशु ना विलापो । माम पाहि ॐ भगवती भव दुःख कापो॥३॥ म ाँ कर्म जन्मा कथनी करता विचारू आ स्रुष्टिमा तुज विना नथी कोई मारू कोने कहू कथन योग तनो बलापो । माम पाहि ॐ भगवती भव दुःख कापो॥४॥ हूँकाम क्रोध मद मोह थकी छकेलो आदम्बरे अति घनो मदथी बकेलो दोषों थकी दूषित ना करी माफ़ पापो । माम पाहि ॐ भगवती भव दुःख कापो॥५॥ न ा शास्त्रना श्रवण नु पयपान किधू ना मंत्र के स्तुति कथा नथी काई किधू श्रद्धा धरी नथी करा तव नाम जापो। माम पाहि ॐ भगवती भव दुःख कापो॥६॥ रे रे भवानी बहु भूल थई छे मारी आ ज़िन्दगी थई मने अतिशे अकारि दोषों प्रजाली सगला तवा छाप छापो । माम पाहि ॐ भगवती भव दुःख कापो ॥७॥ खाली न कोई स्थल छे विण आप धारो ब्रह्माण्डमा अणु अणु महि वास तारो शक्तिन माप गणवा अगणीत मापों । माम पाहि ॐ भगवती भव दुःख कापो॥८॥ पापे प्रपंच करवा बधी वाते पुरो खोटो खरो भगवती पण हूँ तमारो जद्यान्धकार दूर सदबुध्ही आपो । माम पाहि ॐ भगवती भव दुःख कापो ॥९॥ शीखे सुने रसिक चंदज एक चित्ते तेना थकी विविधः ताप तळेक चिते वाधे विशेष वली अंबा तना प्रतापो । माम पाहि ॐ भगवती भव दुःख कापो ॥१०॥ श्री सदगुरु शरणमा रहीने भजु छू रात्री दिने भगवती तुजने भजु छू सदभक्त सेवक तना परिताप छापो । माम पाहि ॐ भगवती भव दुःख कापो॥११॥ अंतर विशे अधिक उर्मी तता भवानी गाऊँ स्तुति तव बले नमिने मृगानी संसारना सकळ रोग समूळ कापो ।माम पाहि ॐ भगवती भव दुःख कापो ॥१२॥