छुम्मासंकेतप्रकाश

महर्षि कश्यप की मानसपुत्री कश्मीर ने अपने गर्भ से अनेकों मतवादों तथा दर्शनों को प्रसूत किया । इन्हीं में ‘क्रम’ शाक्तधारा का प्राचीनतम दर्शन हैं। कालीनय, महानय, महार्थ इसी दर्शन की अपर संज्ञाएं हैं। क्रमदर्शन के प्राचीनतम ग्रन्थों में छुम्मासंकेतप्रकाश का अपना विशिष्ट स्थान हैं । छुम्मासंकेतप्रकाश में पीठेश्वरी देवियों के द्वारा मुखाम्नाय से प्रसारित की गई छुम्माओं तथा उन पर निष्क्रियानन्दनाथ की ‘प्रकाश’ नामक कारिकाएं का संकलन हैं । उपरोक्त कारण से इस ग्रन्थ का अभिधान छुम्मासंकेतप्रकाश हुआ। छुम्मासम्प्रदाय तथा छुम्मासंकेतक इसी ग्रंथ के अपर नाम हैं। ग्रंथ में कहा भी गया है –

पीठेश्वरीमुखायातगीतिचर्चामहोदयः॥-२१६

छुम्मासंकेतप्रकाश के अनुसार निष्क्रियानन्दनाथ पर अनुग्रह करने की इच्छा से सिद्धनाथ ने उनके अवलोकनार्थ एक पुस्तिका प्रदर्शित की तथा छुम्माओं के संकेत का उपदेश दिया । सिद्धनाथ के द्वारा बोधित होकर निष्क्रियानन्दनाथ क्रमिक निष्क्रियज्ञान को प्राप्ति हुए । 

शास्त्रप्रपञ्चविमुखोगताहं प्रत्ययो यदा।
तदा मया सिद्धनाथःसम्पृष्टःपुस्तकान्वितः॥८         
शास्त्रजालमिदंकिंस्याद्भ्रान्तिर्नाद्यापितेच्युता।
पश्येमां पुस्तिकां विप्र सिद्धनाथकरस्थिताम्॥१६
त्यक्तंसर्वमशेषेण शास्त्रजालं समन्ततः। त्यक्तशास्त्रप्रपञ्चेन सिद्धनाथेन धीमता॥२६
इत्युक्त्वा कृपायाविष्टो बोधयामास मां प्रभुः। किंचिच्छुम्मोपदेशन्तुसंकेतपदविस्तरं ॥२८

यह कथानक छुम्मासंकेतप्रकाश के अतिरिक्त वातुलनाथसूत्रों पर अनन्तशक्तिपाद के भाष्य में भी मिलता हैं , परन्तु निष्क्रियानन्दनाथ पर अनुग्रह करने वाले सिद्धपुरुष का नाम सिद्धनाथ के स्थान पर गन्धमादनसिद्ध बताया गया हैं । तृतीयसूत्र के भाष्य में
अनन्तशक्तिपाद लिखते हैं –

“श्रीमन्निष्क्रियानन्दनाथानुग्रहसमये  श्रीगन्धमादनसिद्धपादैरकृतक पुस्तकप्रदर्शनेन या परपदे प्राप्तिरूपदिष्टा सैव वितत्य निरूप्यते ॥ “

यह पुस्तिका पूर्व में पीठेश्वरी देवियों के मुखाम्नाय से चली आई छुम्माओं का संकलन थीं । छुम्मा प्राकृत में रचे सारगर्भितसूत्र को कहा गया है जो अपने गर्भ में अनेकों रहस्य समाए रहती हैं जिन्हें गुरुमुख से ही समझा जा सकता हैं । कहा भी गया हैं-

गुह्योपदेशु ॥६०
सततं भ्राजमानोऽपि सर्वेषां सर्वतः सदा ।
गुरुवक्त्रेण सम्प्राप्यो गुह्योऽयमुपदेशकः॥१४९

इस ग्रंथ में संकलित छुम्माएं प्राचीन कश्मीरी प्राकृत में रचित है,तथा कारिकाएं संस्कृत में। छुम्मासंकेतप्रकाश में १०५ छुम्माएं , ३० कथाएं तथा २५० श्लोकों की कारिकाओं का होना बताया गया हैं ।

पञ्चाधिकशतेनेहपदौघोयःस्थितःपरः। त्रिंशच्चर्चारहस्येननिर्भरस्तेनसर्वदा॥२१८

परन्तु उपलब्ध मातृकाओं में १०३ छुम्माएं , २७ कथाएं तथा २३१श्लोकों की कारिकाएं प्राप्त होती हैं। लिपिकों के प्रमाद से अथवा मातृका की अपूर्णता से यह स्खलन जान पड़ता हैं । छुम्मासंकेतप्रकाश के एक अपूर्ण संस्करण का प्रकाशन श्रीयुत डॉ. नवजीवन रस्तोगी महाशय द्वारा अपनी पुस्तक ‘ कश्मीर की शैव संस्कृति में कुल और क्रम मत ‘ के परिशिष्ट में किया गया हैं। इस संस्करण में ७५ छुम्माएं , २४ कथाएं तथा ७४ श्लोकों की कारिकाएं प्रकाशित की गई हैं । डॉ. नवजीवन रस्तोगी ने पण्डित दीनानाथ यक्ष जी के संग्रह में उपलब्ध अपूर्ण मातृका से इसे लिपिबद्ध किया था । कालान्तर में यक्षजी का संग्रह एक समुदाय विशेष के धार्मिकोन्माद की भेट चढ़ गया तथा यह मातृका नष्ट हो गई। डॉ. रस्तोगी जी के संस्करण की यह विशेषता है की इसमें छुम्माओं पर संस्कृत के साथ साथ प्राकृत में भी कारिकाएं दी गई हैं जो की अन्य मातृकाओं में उपलब्ध नहीं होती हैं । परन्तु सभी छुम्माओं की प्राकृतकारिकाओं को डॉ. रस्तोगी जी ने लिपिबद्ध नही किया था इसी कारण छूटी हुई कारिकाएं कालकवलित हो गई। शारदालिपि में लिखी गई बर्लिनमातृका में प्राकृत कारिकाएं नहीं हैं । डॉ. रस्तोगी जी साधुवाद के पात्र है जिन्होंने अपने पास उपलब्ध सामग्री को विद्वानों तथा विद्यार्थियों के अध्ययन हेतु प्रकाशित किया । जहां एक ओर ‘क्रम’ के अन्य ग्रन्थों पर ‘कुल’ का पूरा पूरा प्रभाव दिखता हैं वहीं छुम्मासंकेतप्रकाश विशुद्धरूप से क्रमदर्शन का ग्रन्थ हैं। एक ओर जहां क्रमदर्शन के अन्य ग्रन्थों में कुलमत के प्रभाव से मंत्र,ध्यान, पूजा,आद्ययाग तथा मेलापादि का समावेश किया गया वही छुम्मासंकेतक ने उसके विशुद्ध रूप को बरकरार रखा ।

अकथनकथा॥

अपूजा पूजा ॥

अमुद्रा मुद्रा ॥

अमन्त्रे मन्त्र॥

इत्यादि छुम्माएं क्रम के विशुद्धस्वरूप का वर्णन करती हैं। कालान्तर में पीठेश्वरी देवियों की इच्छा से वातुलनाथ नामक सिद्ध ने क्रमदर्शन संबंधी तेरह सूत्रों का साक्षात्कार, उच्छुष्मपाद नामक सिद्ध के अनुग्रह से किया । इन वातुलनाथसूत्रों पर भी छुम्मासंकेतप्रकाश का प्रभाव दृष्टिगोचर होता हैं। तृतीयसूत्र की व्याख्या अनन्तशक्तिपाद ने छुम्मासंकेतप्रकाश की सत्रह से लेकर पच्चीस तक की कारिकाओं के अनुसार ही की हैं । तेरहवें सूत्र पर भी छुम्मासंकेतप्रकाश का स्पष्टप्रभाव दृष्टिगोचर होता हैं । विज्ञानभैरव के ७६ वें श्लोक की व्याख्या में शिवोपाध्याय ने छुम्मासंकेतप्रकाश को उद्धृत किया हैं । इस प्रकार छुम्मासंकेतप्रकाश क्रमदर्शन का एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ सिद्ध होता हैं । श्रीभट्ट प्रद्युम्न की उक्ति के साथ लेख समाप्त किया जाता हैं ।

यस्या निरुपाधि ज्योतीरुपायाःशिवसंज्ञया ।‌    व्यपदेशःपरां तां त्वामम्बां नित्यमुपास्महे ॥

ॐ शिवमस्तु…….।