
श्रीशिवपुराणे लकुलीशमाहात्म्ये तृतीयोऽध्याये –
ऋषयः ऊचुः ॥
नमो बालकरूपाय अव्यक्ताय नमोनमः ।
व्योमप्रमाणकायाय कामेशाय नमोनमः ॥
व्योमप्रमाणविद्याय विद्येशाय नमोनमः ।
व्योमप्रमाणकालाय कालेशाय नमोनमः॥
व्योमप्रमाणधर्माय धर्मेशाय नमोनमः।
व्योमप्रमाणविश्वाय विश्वेशाय नमोनमः ॥
एकवज्रद्विवज्राय बहुवज्राय ते नमः।
एककण्ठद्विकण्ठाय बहुकण्ठाय ते नमः॥
एकहस्तद्विहस्ताय बहुहस्ताय ते नमः ।
एकनेत्रद्विनेत्राय बहुनेत्राय ते नमः ॥
नमस्तेऽस्तु महादेव ! नमस्तेऽस्तु महेश्वर ! ।
नमस्तेऽस्तु महारुद्र ! नमस्ते बालरूपिणे ! ॥
नमस्तेऽस्तु महासिद्ध ! देवखातसमुद्भव ! ।
नमस्तेऽस्तु महारुद्र ! नमस्तेऽस्तु सदा हरे ! ॥
अव्यक्ताय नमस्तुभ्यं शाश्वताय च ते नमः ।
एवं स्तवेन देवेशं स्तौति यो लकुलेश्वरम् ॥
स मुक्तः सर्वपापेभ्यो शिवलोके महीयते ।
भोगार्थी लभते भोगान् योगार्थी योगमाप्नुयात् ॥
यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति सत्वरम् ।
शिवस्य पदमाप्नोति नित्यं पठति यो नरः ॥
उपरोक्त स्तोत्र श्रीशिवपुराण के लकुलीशमाहात्म्य के तृतीयाऽध्याय से उद्धृत किया गया हैं । इस स्तोत्र में ऋषिगणों द्वारा भगवान शिव के २८ वें अवतार लकुलीश कि स्तुति की गई हैं । इस स्तोत्र का जो भी जन लकुलीशशिव के सम्मुख पाठ करेंगे वे समस्त पापों से मुक्त होकर शिवलोक की प्राप्ति करेंगे। इस स्तोत्र के नित्य पाठ से भोगार्थी को भोग तथा योगार्थी को योग की प्राप्ति होती हैं। जो भी जन इस स्तोत्र का पाठ करेगा उसके अभीष्ट की सिद्धि होगी तथा अंतकाल में शिवपद की प्राप्ति होगी । इतिशिवम् ॥